क्या ताली एक हाथ से बजती है ?
मीटू, परंतु ताली एक हाथ से नहीं बजती! मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर ! शहंशाह अकबर नहीं, किन्तु सम्पादक और बड़े पत्रकार!
पत्रकार के रूप में कभी ये 20 (विष’कन्या या !) नहीं आई, जब मंत्री बने, तो मीटू यानी इस्तीफा ‘वज़ीर’ पद से दिलाई ! मीटू उनकी मकड़जाल में ‘अभिनेता सलमान खान’ बरी कैसे?
पुरुष तो पेंट-शर्ट में व शरीर ढँककर दफ़्तर जाते हैं, वहीं महिलाएँ विविध परिधान में ! अगर साड़ी और पतली फ़ीते वाली ब्लाउज की बात की जाय, तो क्या यह पीठ-पेट दिखाऊ नहीं होती क्या?
नैनों को कौन रोक सकी है, आजतक? अगर अनजाने भी उनकी नाभि-दर्शन हो जाती है, तो दोषी कौन? ‘नैनों’ वाले या ‘नाभि’ वाली! नारी की सम्मान तो हर हाल में होनी ही चाहिए, किन्तु हास-परिहास के विन्यस्त: क्या ‘पुरुषों’ को दोष-सिद्ध करके?
अगर साड़ी-ब्लाउज भारतीय परिधान है, तो लुंगी-बनियान भी सर्वस्वीकार्य ड्रेस हो चुके हैं ! ‘लुंगी डांस’ के बाद तो और भी ! फिर किसी पुरुष की यह इच्छा क्यों न हो कि वह लुंगी-बनियान में दफ़्तर जायें!
क्यों, ‘एनी क्वेश्चन’ ?