बाधाओं को मीत बना ले
उपवन की शोभा बढ़ती जब,
खिलते पाटल और लिली हैं।
स्नेह-भाव पाकर अपनों का,
अधरों पर मुस्कान खिली है।
प्रेम लुटाया करते हैं जो,
भेदभाव से ऊपर उठकर।
गिरि-शीश झुकाया करते वे,
जो बढते जाते गिर-गिरकर।
बाधाओं को मीत बना ले,
वह साधक है, बहुत बली है।
स्नेह-भाव पाकर अपनों का,
अधरों पर मुस्कान खिली है।।
कल से सीख-समझ लेते हैं,
बीत गया जो न उस पर रोते।
वर्तमान में श्रम सीकर से,
स्वर्णिम कल के सपने बोते।
सदा सुवासित श्रम श्वेद से,
खलिहान, खेत, द्वार, गली है।
स्नेह भाव पाकर अपनों का,
अधरों पर मुस्कान खिली है।।
— प्रमोद दीक्षित मलय