प्रतिमा और प्रतिभा गढ़नेवाले कुम्हार
शुभ विजयादशमी! प्रतिमा गढ़नेवाले ‘कुम्हार’ को भी शुभो, किन्तु ‘अहं’ को जलाकर, बार-बार 3 पुरुषों (रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद) को ही जलाकर क्यों? यह भी एकतरह का ‘एसिड अटैक’ है!
वयोवृद्ध साहित्यकार व ‘संवदिया’ के प्रधान संपादक श्री भोला पंडित ‘प्रणयी’ ने दि. 23.01.1991 के सम्प्रति मुझे व सिर्फ़ मेरे लिए यह ऊर्जस्विन प्रज्ज्वलित ‘दीप’ अपनी ज्ञानपरायण लेखनी से बनाकर दिए थे यानी आज से 29 बरस पहले….
सभी फेसबुक मित्रो को दीपावली के लिए सादर निवेदन कि आप सब माटी के दीये जलाकर कुम्हार बंधुओं की मेहनत और कलाकारिता को सम्बल प्रदान करेंगे….
ऊर्जा बचाते हुए धूमरहित फुलझड़ी खेलेंगे…. हाँ, उनके लिए भी दीपक जलायेंगे, जो हमें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरहदों पर ऐसी रात भी पहरे दे रहे हैं व होंगे….
हम उन बुज़ुर्गों के सम्मान रक्षार्थ भी दीये जलायें और उनके लिए तो निश्चित ही जलायें, जो इस धरती पर लौटकर कभी न आयेंगे…. मुझे व सिर्फ़ मेरे लिए यह ऊर्जस्विन प्रज्ज्वलित ‘दीप’ अपनी ज्ञानपरायण – लेखनी से बनाकर दिया (प्रेषित किया) था…..
सभी FB मित्रों को दीपावली व दीवाली की इसतरह से शुभकामनाएं…. माटी के दीये जलायें, कुम्हार बंधुओं के मेहनत और कलाकारिता को सम्बल प्रदान करेंगे….. ऊर्जा बचाते हुए धूमरहित फुलझड़ी खेलेंगे….
आइये, उनके लिए भी दीपक जलायें, जो हमें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरहदों पर इस राती भी प्राणान्तक पटाखों से रु ब रु होंगे! तो बुज़ुर्गों के सम्मान रक्षार्थ दीये जलायें और उनके लिए तो निश्चित ही जलायें, जो इस धरती पर लौटकर कभी न आयेंगे….
इसबार के दीपावली में ‘दीप’ इसतरह जलाइए
कि आपसे ईर्ष्या रखनेवालों का ‘दिल’
अगली दिवाली तक
जलती रहे….
बाहरी दीये जलाने से सिर्फ़ मच्छर भागेंगे, किन्तु अपने अंदर का दीये जलाओगे, तो सद्ज्ञान पाओगे….
“शुभ दीपावली, सुरक्षित दीवाली ।”