जो हम दीपक जलाना सीख लेते हैं
हवा में जो हम दीपक जलाना सीख लेते हैं ।
ग़मों की भीड़ में मुस्कुराना सीख लेते हैं ।।
उन्हें आता नहीं दुश्मनों को भी बुरा कहना।
वो सलीके से गीत गाना सीख लेते हैं।।
कैसी जात, मजहब और कैसी सरहद।
प्यार से हर पर्दे हटाना सीख लेते हैं।।
पौधे नाजुक हैं, तरीके से लगाना इन्हें।।
उपजाऊ हो जमीन, फलाना सीख लेते हैं।।
छोड़ो भी ऐसी जिंदगी के फलसफे साहब।।
चलो संजीव अब हंसना हंसाना सीख लेते हैं ।।
— संजीव ठाकुर