गैर से हाथ
ग़ैर से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है।
फासला और बढ़ाने की ज़रूरत क्या है।।
असली सूरत नहीं जो देखना चाहे, उसको।
आईना घर मे सजाने की ज़रूरत क्या है।।
अपनी ज़िद में तू रहे और मैं अपनी ज़िद में।।
इस तरह साथ निभाने की ज़रूरत क्या है।।
माना कि दूर तलक राह अंधेरी है, पर।
यादों को आग लगाने की ज़रूरत क्या है।।
उम्र भर तालों में रखीं जो ख्वाहिशें तूने।
यकायक सबको बताने की ज़रूरत क्या है।।
लफ्ज़ हैं काफी तेरे, ख़ूने दिल बहाने को।
हाथ मे तीर उठाने की ज़रूरत क्या है।।
बात जो खत्म ही होनी है ‘लहर’ तो फिर यूँ।
रूठने और मनाने की ज़रूरत क्या है।।