प्रेम
प्रेम क्या है
क्या है परिभाषा इसकी
कोई सुधीजन
मुझको तो बतलाए
मैं तो परिभाषित कर न सका
प्रेम के इन
दो शब्दों को
कोई शब्द मिला
नहीं मुझको
जो कर देता
इसकी व्याख्या
मैंने तो इतना ही समझा
यह है श्रृंगार रूह का
आंखों को पढ़कर
स्पर्श कर किसी का
अहसास हुआ इसका
निशब्द दिखा
यह मुझको
निष्कलंक
निष्कपट
निस्वार्थ
निर्दोष
सब कुछ
देखा इसमें
बस मैंने इतना ही जाना
प्रेम क्या है