कविता

शबरी

मतंग मुनि की शिष्या शबरी
कुटिया बना कर
हर रोज प्रभु आगमन की आस में
राह के काँटे चुनती
फूल बिछाती और
प्रभु की राह तकती,
आस न छोड़ती
विश्वास डिगने न देती,
उसे पक्का विश्वास था
उसके प्रभु राम आयेंगे
उसको न बिसरा पायेंगे।
अंततः उसका विश्वास जीत गया,
प्रभु राम का उसकी
कुटिया में आगमन हुआ।
उसने जी भरकर
प्रभु को निहारा,
पाँव पखारे, स्वागत सत्कार किया
खाने के लिए चख चखकर
मीठे मीठे बेर दिए,
लक्ष्मण जी संकोचवश
प्रभु राम को निहार रहे थे,
प्रभु राम शबरी के भाव देख
मुस्कराते हुए बेर खाये जा रहे थे,
शबरी के निश्छल प्रेम को
आत्मसात कर रहे थे।
फिर शबरी को
मिले वरदान के कारण
प्रभु ने आशीर्वाद दिया,
अपने भक्त शबरी को
सशरीर स्वर्ग लोक भेज ,तार दिया,
शबरी को मोक्ष दिया
जीवन मरण के चक्र से मुक्त किया।
शबरी का विश्वास जीत गया,
प्रभु राम के साथ शबरी का भी
जगत में अमिट नाम हो गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921