गीतिका/ग़ज़ल

रिश्ते

सहेज कर रखा जिन को वो,अजनबी होते क्यों रिश्ते।

टूट कर पात से बिखर जाएं मतलबी होते क्यों रिश्ते।
दिल के जज्बात समझे न, कयामत  ढाती नादानियां,
चले  दो कदम  हाथ थाँमें, प्रतिवादी होते क्यों रिश्ते।
वो मिले थे शहर अपनें में, दिल लूट कर ले गए जानी,
न घर के रहे  न घाट के,  दिल्लगी से होते क्यों रिश्ते।
वो लुट कर ले गया भरे ख्वाब, मेरी  उम्र भर के लिए,
कयामत  मुहब्बत पर  ढाते, ग़ज़नवी होते क्यों रिश्ते।
दूर से देखा तो नजदीकियां, मुहब्बत में  बदलने लगी,
पायदान पर आत आते, आरामतलब होते क्यों रिश्ते।
बहुत दिनों के बाद मिला  तो, लगा  कहीं देखा सा है।
मुंह मोड़ के चल दिए इतने, बेअदबी होते क्यों रिश्ते।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995