कविता

दीपशिखा

दीपशिखा तू जल अकंपित।
डगमगाने दे तिमीर को,
जागने दे पवन को,
तू न होना खंडित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
जीवन पथ पर पथिक चल रहे,
अंधियारे में भटक न जाएं,
राह दिखलाना निरंतर,
लक्ष्य रखना निहीत।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
बीत जाएगी निशा होगा सबेरा,
खत्म हो जाएगा फिर संघर्ष तेरा,
तू न घबराना तनिक भी,
होना न भयभीत।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
भोर की लालिमा देख
दीपशिखा मुस्कुराई,
मानो उसकी जीत पे रवि ने दी हो बधाई,
इस तरह लहराई लौ मानो हुयी हर्षित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
मुस्कुराती लौ के पीछे दुख छुपा था,
जानती थी बिदा होने का समय था,
थरथराने लगी ऐसे,
नयन जैसे अश्रुपूरित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
— पुष्पा अवस्थी ” स्वाती “

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है