दीपशिखा
दीपशिखा तू जल अकंपित।
डगमगाने दे तिमीर को,
जागने दे पवन को,
तू न होना खंडित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
जीवन पथ पर पथिक चल रहे,
अंधियारे में भटक न जाएं,
राह दिखलाना निरंतर,
लक्ष्य रखना निहीत।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
बीत जाएगी निशा होगा सबेरा,
खत्म हो जाएगा फिर संघर्ष तेरा,
तू न घबराना तनिक भी,
होना न भयभीत।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
भोर की लालिमा देख
दीपशिखा मुस्कुराई,
मानो उसकी जीत पे रवि ने दी हो बधाई,
इस तरह लहराई लौ मानो हुयी हर्षित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
मुस्कुराती लौ के पीछे दुख छुपा था,
जानती थी बिदा होने का समय था,
थरथराने लगी ऐसे,
नयन जैसे अश्रुपूरित।
दीपशिखा तू जल अकंपित।
— पुष्पा अवस्थी ” स्वाती “