बालगीत – माँ की लोरी
मुझे याद है माँ की लोरी।
माँ थी मेरी कितनी भोरी।।
बिस्तर जब गीला हो जाता।
रोकर अपना कष्ट बताता।।
लेती समझ वेदना मोरी।
मुझे याद है माँ की लोरी।।
नींद नहीं जब मुझको आती।
थपकी दे – दे मुझे सुलाती।।
गा- गा मीठे स्वर में लोरी।
मुझे याद है माँ की लोरी।।
कभी जाँघ में चींटी काटे।
पापाजी के पड़ते चाँटे।।
ढूँढ़ हटाती माँ तब फौरी।
मुझे याद है माँ की लोरी।।
पीढ़े का था झूला डाला।
कभी खटोले पर मतवाला।।
झोंटा देतीं बहना छोरी।
मुझे याद है माँ की लोरी।।
प्यारी – प्यारी निंदिया आजा।
मेरे लाल को आइ सुलाजा।।
गाती थी माँ मेरी गोरी।।
मुझे याद है माँ की लोरी।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’