मुक्तक
विलखतीं रोज सीतायें बचाना भूल जाते हैं।
मगर नारी की महिमा पर गजल औ गीत गाते हैं।
दिलों में लाख रावण को छिपाये घूमते हैं पर-
बनाकर कागजी रावण विजय उत्सव मनाते हैं।।
पिता का साथ छूटे तो ये दुनिया रूठ जाती है।
सगे रिश्तों के माला की कड़ी भी टूट जाती है।
मरे जब पांडु तो अपने हुए सब गैर से बदतर-
पिता के दम पे है किस्मत, न हों तो फूट जाती है।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध