शक्ति रूप
नवजीवन का सृजन वो करती,
स्नेह से सबका जीवन भरती;
परन्तु उसके लिए ही क्यों
घनघोर मेघ की गर्जना थी,
ये कैसी विकट मन्त्रणा थी!
‘या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण’
मंत्र बोल पूजते उसको,
पुष्पांजलि व अर्क देते उसको;
आज उस माँ के मन मे कंपना थी,
एक विकट व भीषण जंत्रणा थी!
अब शक्ति रूप को जगाओ माँ;
इन असुरों का विनाश करो,
एक हुँकार भर, इनको मिटाओ माँ;
आवश्यकता है, ज्वलंत तर्जना की,
अन्याय के विरोध में अभिव्यंजना की!
— रूना लखनवी