एक दुर्बल पक्ष
उच्च शिक्षित महिलाएँ भी जब पाखंडी, आडम्बरी, ढोंगी, खुदगर्ज़ी, लालची और पति व ससुराल से दब्बू हो; तो उस ‘बेटी’ को पढ़ाकर क्या फायदा ? जैसे मैंने लिखा, आपने भी लिखा ! मैं तो हमेशा से गधा हूँ, भाई !
लोकसभा चुनाव-2019 के समय श्री नरेन्द्र मोदी को भी श्री अखिलेश यादव ने गधा कहा था । तब श्री मोदी ने श्री यादव को जवाब दिया था, मैं उसे दुहरा रहा हूँ- गधा कर्मठता के प्रतीक हैं, निकम्मेपन व कामचोर का नहीं ! मैं गधा हूँ, इससे साबित होता है कि आप नि…. या का…. जरूर हैं।
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ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो सफल और संपन्न होकर भी सिम्पलीसिटी में जीते हैं । यह तो बड़प्पन है । ….किन्तु कम्युनिस्ट न सम्पन्न हुआ चाहते हैं, न सफल ! वह सिम्पलीसिटी में ही रहना चाहता है, जो कि गरीबी के फलस्वरूप है !
अगर क्षमता है, तो हम गरीब क्यों रहें और गरीबी में क्यों जीये? कहने का मकसद है, सम्पन्नता पाकर अगर हम सिम्पलीसिटी में रहे, तो यह हमारी महानता है, अन्यथा सम्पन्नता का डींग हाँकना हमारे अभिमान का सूचक है, जो कालांतर में दुर्बल पक्ष के रूप में अभिहित है।