विजय
आज विजयदशमी का पावन पर्व है. चहुं ओर विजय पर्व का उत्साह है. विजय अंधकार पर प्रकाश की, असत्य पर सत्य की!
बलबीर भी सदा से ही विजय का आकांक्षी रहा है और विजय के लिए भरसक प्रयास कर सफलता भी पाता रहा है. बलबीर ने गरीबी और मुफलिसी से लड़कर विजय श्री पाई है.
बचपन में वह घूम-घूमकर समाचार पत्र बेचता था. किसी तरह स्कूल में दाखिला मिला. वहां भी अपनी सफलता के झंडे गाड़े और एक अच्छे स्कूल में छात्रवृत्ति लेकर आगे बढ़ता गया. पढ़कर वह एक अच्छी सी नौकरी भी पा गया.
समय की बलिहारी, कोरोना महामारी ने उसकी नौकरी पर भी ग्रहण लगा दिया. धन की तंगी के कारण बहुत-से कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया, जिसमें बलबीर का भी नाम आ गया.
कुछ समय तक तो वह सोचता-भटकता रहा, फिर एक नया रास्ता निकाल लिया.
जिस स्कूटी से बलबीर ऑफिस जाते थे उसी पर ढाबा खोल लिया. लोग बलबीर के राजमा चावल और छोले-कढ़ी के स्वाद के मुरीद हो गए. काम बढ़ जाने पर उसने एक दोस्त को भी नौकरी दी, उसको भी नौकरी से निकाल दिया गया था. अब दोनों का काम चकाचक चल रहा है.
विजय उनकी मुट्ठी में है. उनके लिए हर रोज विजयदशमी है.
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रुराम के जीवन में “शस्त्र और शास्त्र” में समन्वय का प्रतीक है “विजयादशमी उत्सव”🔥👌विजयादशमी उत्सव असत्य पर सत्य की, आसुरी शक्तियों पर सात्विक शक्तियों की, राक्षसों पर देवताओं की विजय का प्रतीक है।
सभी को विजयदशमी पर्व की कोटिशः हार्दिक शुभकामनाएं.