हर वो स्पर्श पुण्य है
किसी ने कहा है-
अकेले हम ही नहीं शामिल
इस जुर्म में,
नजरें जब मिली
मुस्कुराये तुम भी थे !
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तुम मुझे मिलो या न मिलो !
पर तुम्हारी पल्लू का स्पर्श
मिलती रहे प्रतिदिन !
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हर वो स्पर्श पुण्य है;
जब हम किसी की देह को-
निःस्वार्थ प्रेम के साथ छूते हैं !
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मैं भी हुआ हूँ
लब-हादसे का शिकार,
सपनो के हसरतों ने
किया व्यभिचार !
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बहुत कोमल हैं पँखुड़ियाँ
तुम्हारे फूल की-
पर विचारों की भूमि तेरी;
इतनी कट्टर, अनुर्वर क्यों है ?
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शादी हो या ना हो,
दीगर बात है;
पर कनखियों से
प्यार होती रहे !
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हर वो स्पर्श पुण्य है
जब हम
किसी अनजान की देह को-
निःस्वार्थ प्रेम के साथ छूते हैं!
हर वो स्पर्श पाप है-
जो शर्त्त, शादी
या कॉन्ट्रैक्ट से प्राप्त होते हैं!