कविता

अब तुम्हारे लिए

लेखनी बनकर बस तुम रहो साथ
मैं लिखूं गीत बस अब तुम्हारे लिए..।।

जो बचे खाली पन्ने हैं अरमानों के
प्रीति उस पर लिखूं मैं तुम्हारे लिए..।।

मेरी फीकी हंसी में मिला दो हंसी
मुस्कुराउंगा मैं बस तुम्हारे लिए..।।

रूठकर मुझसे तुम न सताया करो
प्रेम मेरा है बस अब तुम्हारे लिए..।।

साथ से साथी बन जाएं आओ चलें
मेरा जीवन है बस अब तुम्हारे लिए..।।
अब तुम्हारे लिए..।।

— विजय कनौजिया

विजय कनौजिया

ग्राम व पत्रालय-काही जनपद-अम्बेडकर नगर (उ0 प्र0) मो0-9818884701 Email- [email protected]