ग़ज़ल
खिल उठे हैं फूल प्यारे हर तरफ।
खुशनुमा हैं अब नज़ारे हर तरफ।
साथ जब से आपका मुझको मिला,
ख़ूबसूरत से नज़ारे हर तरफ।
बाद बारिश के फ़ज़ा जगमग हुई,
दिख रहे हैं अब सितारे हर तरफ़।
इक ज़रासी आज धरती क्या हिली,
खौफ़ में हैं लोग सारे हर तरफ़।
जब नज़र अच्छाई की जानिब मुड़ी,
तब दिखें हैं लोग प्यारे हर तरफ।
ज़हर आलूदा फ़ज़ा इतनी हुई,
हैं खिजां के अब नज़ारे हर तरफ़।
नूर बिखरा हर तरफ जिसका हमीद,
सब उसी के हैं सहारे हर तरफ।
— हमीद कानपुरी