धरती पर की कुछ बातें !
अपने देश में पति को परमेश्वर मानने की अवधारणा है, अगर ‘पति’ आवारा हो, मवाली हो, नशेड़ी हो, चोर हो, पॉकेटमार हो, आपको पीटते हों, फिर भी वो परमेश्वर है, क्यों ? क्योंकि मेरी माँ भी नानी से यह सबक लेकर आई हैं ! दरअसल, परमेश्वर को पति मान लेने की प्रार्थना से ही निकला है । चूंकि स्त्री और पुरुष के भाव जगत में भिन्नता होती है, इसलिए पुरुष उस शक्ति स्वरूप में हमेशा माँ को देखता है! प्रेमिका अपनी आत्मा के आधे टुकड़े की तलाश में कभी उसे शिव या कभी कृष्ण या कभी राम में खोजती है या इनके गुणों को धारण करने वाले व्यक्ति को खोजती हैं ! वास्तव में प्रेम में डूबी औरत सदा सुहागन ही होती हैं । क्योंकि जब वो प्रेम में होती है, तो प्रेम ही परमेश्वर हो जाता है और परमेश्वर ही पति तथा परमेश्वर कभी मरता नहीं, इसलिए स्त्री सदैव सुहागन रहती है !
••••••
ताजमहल : एक ‘मंदिर’ रहा हो ! google search के प्रसंगश: विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं के भारत में प्रवेश यहाँ की संपत्ति और स्थापत्यों को लूटने के उद्देश्य से ही हुए थे ! वे सब मुगलों के मातृ और पितृ पक्ष के अग्र-वंशज (पूर्वज) थे और वे भी प्रथमतः भारत को लूटने के ख्याल से ही देश के हिन्दू राजाओं (सिर्फ ‘राजपूत’ नहीं, स्थान विशेष लिए ‘अन्य’ भी) पर आक्रमण किये थे । भारत का विस्तार तब पश्चिम एशिया तक था और देश की सीमा ईरान से लगी थी, अन्यार्थ ईरान भी विस्तीर्णता लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में ही था, तब वह आर्यावर्त्त था यानी आर्यावर्त्त की सीमा यूरोप तक थी । … और पश्चिम एशिया का यह हिस्सा यूरोप से सटा था । …. तो पश्चिम एशिया और यूरोप से ये आक्रांता आये थे ! …. परंतु हुमायूँ को बार-बार हारने के बावजूद इस देश से ज्यादा ही मोह हो गया, जिन्हें कालक्रम के दौरान हिन्दू वृद्धा ही मौत के मुँह से बचाया था । बाद में अकबर ने हिन्दू महिलाओं से शादी भी रचाये और इसके बाद तो मुगल यहीं के रह गए । चूँकि भारत मंदिरों और अध्यात्म का देश के रूप में ख्यात है और मुगल व अन्य मुस्लिम आक्रांता इस्लाम धर्मावलम्बी थे, जो कि इस्लाम को जबरदस्ती अपनाए जाने को जोर देते थे । ऐसे में नादिरशाह, तैमूरलंग’से कृत्य वे कर बैठे हों, जिसे नकार भी तो नहीं सकते ! …. तो बाबरी मस्जिद, ताजमहल आदि के पूर्व मंदिर होने संबंधी श्रुत बातों को खारिज़ भी कतई नहीं की जा सकती ! हिन्दू में अधिसंख्यक आबादी हमेशा भूखजीवी और भयजीवी रहा है, ऐसे में भूख-भयजीवी आदमी हमेशा वर्त्तमान को सोचता है । हम ‘ताजमहल’ को भी वर्त्तमान में देख रहे हैं । … और भूतों की बस कल्पना ही की जा सकती है । वाम इतिहासकारों को, जो सर्वाधिक संख्या में रहे, वो हिन्दू होकर भी उन्हें हिन्दू संस्कृति कभी नहीं भाया, तो उनसे क्या अपेक्षा रखी जा सकती थी ?
••••••
ऐसे कई विभागीय पदधारकों, कर्मचारियों, शिक्षकों, नर्स, लिपिकों, शिक्षिकाओं को देखा है, जो उस दिन धार्मिक कार्यों यथा- बाबा धाम, माता वैष्णो देवी, पुरी की यात्रा, छठ पर्व, तीज़, करवा चौथ, गोवर्धन पूजा इत्यादि में कार्यालय से बाहर संलग्न होकर भी वह उस दिन का ‘आकस्मिक अवकाश’ (CL) न लेकर कार्यालय या विद्यालय आकर हाज़िरी बना लेते हैं !