जब भी तुम्हारा दिल करे
लौट आना बेफ़िकर जब भी तुम्हारा दिल करे ।
तोड़ देना नींद तनहा ख्वाब से मिलकर गले ।।
मैं हर पल राह देखती हूँ ।
जब कोई आवाज़ सुनती हूँ ।।
वो इक दर्पण जिसे हमने संग साथ था निहारा।
किसी इक स्याह लम्हे ने बेतरह तोड़ डाला ।।
मैं वो कतरे बटोरती हूँ ।
आँच से कांच जोड़ती हूँ ।।
कूज कोकिल की बागों ढाई आखर बोलती थी।
शहद जीवन का हरपल जो हृदय में घोलती थी।
मैं वह झनकार खोजती हूँ ।
जब कोई परिंदा देखती हूँ ।।
चली आती है खुशबू भूल भटके मेरे आँगन में।
भिगो जाती है रग रग देह की मन के तड़ागों में ।।
मैं वो हर बात खोजती हूँ।
जब भी गुलाब देखती हूँ ।।
बात कोई बड़ी छोटी समय की बात सब होती ।
सुलगते रिश्तों के चूल्हों जगत यह सेंकता रोटी ।।
ये लिख तुम्हें रोज भेजती हूँ।
हवा जब मुड़ते देखती हूँ ।।
प्रियंवदा