गीत/नवगीत

जब भी तुम्हारा दिल करे

लौट आना बेफ़िकर जब भी तुम्हारा दिल करे ।

तोड़ देना नींद तनहा ख्वाब से मिलकर गले ।।

मैं हर पल राह देखती हूँ ।

जब कोई आवाज़ सुनती हूँ ।।

वो इक दर्पण जिसे हमने संग साथ था निहारा।

किसी इक स्याह लम्हे ने बेतरह तोड़ डाला ।।

मैं वो कतरे बटोरती हूँ ।

आँच से कांच जोड़ती हूँ ।।

कूज कोकिल की बागों ढाई आखर बोलती थी।

शहद जीवन का हरपल जो हृदय में घोलती थी।

मैं वह झनकार खोजती हूँ ।

जब कोई परिंदा देखती हूँ ।।

चली आती है खुशबू भूल भटके मेरे आँगन में।

भिगो जाती है रग रग देह की मन के तड़ागों में ।।

मैं वो हर बात खोजती हूँ।

जब भी गुलाब देखती हूँ ।।

बात कोई बड़ी छोटी समय की बात सब होती ।

सुलगते रिश्तों के चूल्हों जगत यह सेंकता रोटी ।।

ये लिख तुम्हें रोज भेजती हूँ।

हवा जब मुड़ते देखती हूँ ।।

प्रियंवदा

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।