कविता

दोस्ती का रिश्ता

दोस्ती का रिश्ता
जन्म से सारे रिश्ते लिखित आवे
मात-पिता अनुज सब उपहार में पावे |
दोस्ती हि ऐसा रिश्ता माना जावे
जसका चुनाव हम स्वयं है करत आवे ||
यही है दोस्ती॥ २॥
संगत अपनी खुद परखी जावे
जो दुनिया से पहचान करावे |
और पीड़ा में रहे साथ हमारे
नहीं बस दिखावे की डोर बांधी जावे ||
यही है दोस्ती॥ २॥
दोस्ती, कहने को तो है दो लफ्ज़
पर मानो तो बंदगी॥
अगर सोचो तो गहरा सागर
और डूबो तो जिंदगी
यही है दोस्ती॥ २॥
दोस्ती ऐसी भाषा है
जो बताई नहीं जाती॥
महसूस तो होती है
पर जताई नहीं जाती
यह है दोस्ती॥ २॥
दोस्ती एक नशा है
जिसे हम छोड़ नहीं सकते॥
दोस्ती की है हमने
अभी से मुंह मोड़ नहीं सकते
यही है दोस्ती॥ २॥
दोस्ती में होती है ईमानदारी
इसमें दुनियादारी नहीं होती॥
दोस्ती एक राज है जो खुलता नहीं
यह वह दीपक है जो बुझता नहीं
यही है दोस्ती॥ २॥
अब गम चाहे कितना हो
पर जब दोस्त हो साथ॥
ऐसा लगता है कि अब
डरने की नहीं कोई बात
यही है दोस्ती॥ २॥
सुख दुख में जो साथ निभावे
वही सच्चे मित्र कहलावे |
कृष्ण भी थे अधूरे बिचारे
बिन सुदामा के सहारे ||
यही है दोस्ती॥ २॥

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा