हाइकु/सेदोका

हाइकु

मेरा भी मन
घरौंदा हो अपना,
अपनों संग।

घरौंदा बने
हरेक का सपना,
काश!पूरा हो।

बच्चें भी चाहें
छोटा ही सही पर,
अपना तो हो।

पेट न भरे
घरौंदा बने कैसे?
सपना भर।

बाढ़ आकर
सपनों का घरौंदा ,
उजाड़ गई।

उम्मीद कहाँ
अपने भी छत का,
किरायदार।

सपना घर
बना रहें हैं रोज,
इसी में खुश।

बिखर रहा
आशियाना सबका,
महँगाई में।ए

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921