कविता

सौगात

चिंता छोड़ो
प्रसन्न रहो,
दुःखों से घबराना कैसा?
सुख के दिन गये तो क्या?
दुःख की रात भी
चली ही जायेगी,
जाते हुए खुशियों की
सौगात छोड़ जायेगी।
जीवन में फिर
बहार आएगी।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921