तन का प्रेम और मन का प्रेम
तन का प्रेम ‘वासना’ है और मन का प्रेम ‘बौखलाहट’ ! आप भी अपनी पत्नी को प्रेम नहीं, बल्कि ‘वासना’ के नजरिये से देखते हैं, क्योंकि अगर आपमें हिम्मत है, तो उनकी देह को भोगिये मत ! भोगना ही ‘वासना’ है, प्रेम नहीं ! ….और प्रेम की भी अंतिम नियति ‘वासना’ है ।
पति का मतलब पत्नी को भोगने के लिए रजिस्ट्री पा लेना है क्या ? ….अगर भोग कर लिये, तो यह पागलपन है । प्रेम का अंधापनरूप पति के साथ जुड़ा है, वरना सच्चा प्रेम तो एकतरफा ही होता है, जो प्रेमी करते हैं और जो अपरिमेय है, क्यों?
ऑनलाइन अखबार मेकिंग इंडिया के अनुसार, यह उस समाज की कमिटमेंट है, जो देशद्रोही अफज़ल की याद में घर-घर अफज़ल पैदा किए जाने का प्रण लेते हैं। यही उस समाज की कमिटमेंट है, जो याक़ूब के जनाज़े में भीड़ लाती हैं । यही उस समाज की कमिटमेंट है, जो मीम अफज़ल जैसे ज़हीन आदमी को भी, मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के लिए जनाज़े की नमाज़ की मांग को जायज़ ठहराने को चैनल पर लाती है ! वरना, आतंक का कोई धर्म नहीं होता, यह सुन-सुन कर कान पक गए ही होंगे, क्यों ?
यह तो उसतरह की बातें हुईं कि ये भी चोर, वे भी चोर यानी बात बरोबर ! तो यही न, चोर-चोर मौसेरे भाई !