वाह रे पुरस्कार
वाह रे ….पुरस्कार !!!
पुरस्कार लौटने से ऐसा लगता है, उन्हें पुरस्कार अपने कृति के लिए नहीं ,बल्कि “सेटिंग” कर प्राप्त किया है! किसी की थोड़ी उपलब्धि पर सबसे ज्यादा “भारतरत्न” या “पद्मश्री” कांग्रेस ने दिया है।
सन 1984 के सिख दंगे पर लेखक या किसी को वर्ष 1985 में कोई पुरस्कार लेना ही नहीं चाहिए था । क्या किसी एक ‘पार्टी’ को ही बार-बार टारगेट बनाये जाना चाहिए ?
यहाँ ’20 करोड़’ से अधिक आबादी वाले भी “माइनॉरिटी” कहलाते है !
किसी को भी अपने अपने धर्म की रक्षा करने का अधिकार है । हमारी संस्कृति में “पेड़पौधे,पशु और धरती” में से ‘माँ’ की छवि है।
एक ही समाज में हत्या कर ‘खान – पान’ किसी भी तरह आदर्श स्थिति नहीं है , लॉजिक या बहस सहिष्णु होते है । हमारे सम्मानित “प्रधानमंत्री” में गजब की एनर्जी और बेजोड़ का साहस है…. “T -BOY” को मेरा सलाम !