गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

न हुई मुकम्मल ख्वाहिशें और रहा मलाल बरसों,
चंद ख्वाबों को संजोए मैं फिर भी राह चलता रहा।

नामुमकिन लगा जब कुछ सवालों का जवाब तो,
मुट्ठी मैं खोल कर अपनी यूंही हथेली मलता रहा।

इंतजार की इंतेहा जब सब्र खोने लगी रह रहकर,
उस अधूरे ख्वाब का जिक्र मन को खलता रहा।

मिलता नहीं किसी को दिल के चाहने भर से सब,
मैं कोशिशें तमाम सब हार कर भी करता रहा।

इक दिए ने मुझे जलना आंधियों में भी सिखा दिया,
शुक्र मान कर मैं कभी खामोश कभी हंसता रहा।

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |