ग़ज़ल
मर्यादा में प्रेम निभाना ये मुझे सिखाया है तुमने
प्रेम है पूजा प्रेम तपस्या ये मुझे बताया है तुमने ।
प्रेम कोई उपहार नहीं है रुह से रुह का बंधन है
प्रेम तो है एक मौन समर्पण ये समझाया है तुमने।
जिस्म का मिलना मिलन नहीं ये तो एक तमाशा है
मन से मन का मिलन मिलन है, अहसास कराया है तुमने।
प्रेम छुपा होता है कितना दो नैनो की ज्योति में
बिन बोले सब कह जाती आंखों से जताया है तुमने ।
क्यों न तुमको मोहन समझूं क्यों न तुमसे प्यार करूं
बिरह में जीना हमें सिखाकर राधा बनाया है तुमने।
तुम्हें पता है बिना मिले ही तुमको तन मन सौंप दिया
हमें पता है बिना मिले ही मेरा साथ निभाया है तुमने।
साथ तुम्हारा जबसे मिला मुझे अंधियारे का खौफ नहीं
बस प्रेम दीप बुझने न पाए जिसको जलाया है तुमने।
मैं थी जानिब प्रेम की गंगा पर ये मुझे अहसास न था
मैं खुद से ही थी अंजान मुझे खुद से मिलाया है तुमने।
— पावनी जानिब