अष्ट अवगुण
गरज के साथ
विवेक भी महीन है
रोक मुद्रा के विकार से
चीत्कार खूब-खूब
उत्तर में अभिष्टि कहीं है बेअसर
बेटी-बेटे के आक्रोश से आगे बढ़
आदत भी सूर्यमुखी है,
यह वही चंद्रमुखी है ।
अष्ट वीतराग के बनिस्पत
और आगे भी
देखता सिम्बल है ।
यह भी कतिपय
अविराम है,
यहाँ संधारण ज्ञात है,
अज्ञात चिरनीत है ।
अभिज्ञान अखंड है ।
खंड-खंड कुछ भी नहीं ।