भावना अनाहत है
भावना अनाहत है,
क्यों फिर आहत है ?
यह नहीं मुसीबत है ।
आदत की कठिनाइयों में
विवाद कायम नहीं है,
यह जरायम नहीं,
अखण्डता है ।
द्वारा के द्वार पर अधीरता है ।
यह कैसी वितंडता है ?
दोस्त से पीड़ित होकर भी
कोई नहीं घायल है,
कहिये बंधु ।
हे मेरे बांधव !
आखिर क्या कोई बात है ?
अधीरता क्या जरूरी है ?
अन्यथा नहीं प्रहरी है ।
सावधान ! सावधान !
सावधान ! सावधान !