जिंदगी की सांझ
बस दो चीजों के सहारे
जिंदगी की सांझ बीत रही है
चाय की चुस्की
और मीठी यादें तुम्हारी
बस और कोई सहारा नहीं
लबों से लगती है जब
प्याली चाय की
खो जाती हूँ कहीं दूर
तुम्हारी यादों की क्षितिज में
भूल जाती हूँ मैं
हर इक दर्द ओ गम
तुम दोनों से कोई प्यारा नहीं
गुड़ की चाय की मिठास
ऊपर से ईलायची अदरक का स्वाद
और चाहिए ही क्या
जब तेरी यादें हैं मेरे साथ
हर इक चुस्की पर
आँखों में तैर जाती तस्वीर तुम्हारी
दोनों के सिवा अब गुजारा नहीं
कौन हर पल साथ रहा है
यही सोचकर मन बहला लेती हूँ
बस एक ही लत लगा रखी है मैंने
चाय की चुस्की लेते हुए
तुम्हारी वो ही तस्वीर
अक्सर सीने से लगा लेती हूँ
जानती हूँ मिलना तू दोबारा नहीं
बढ़ जाती है चाय की मिठास
जब डूब जाता है उसमें
तेरी यादों का बिस्कुट
फिर तैर जाती है
एक मीठी सी मुस्कुराहट
“सुलक्षणा” के मायूस चेहरे पर
दिल ने कब धड़कन को पुकारा नहीं
— डॉ सुलक्षणा