प्रतिज्ञा
आज मनोहर के अस्पताल के कैंसर-उन्मूलन विभाग का विधिवत उद्घाटन होना था. इस कार्य के लिए उसने मनोयोग से कितनी तैयारी की थी, उसे याद आ रहा था.
मनोहर ने अक्सर प्रतिज्ञा की बात सुनी थी. बात प्रतिज्ञा की हो, तो भीष्म प्रतिज्ञा की प्रतिज्ञा की बात आए बिना नहीं रहती. भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे. उन्होंने एक नहीं दो-दो प्रतिज्ञाएं कीं और आजीवन निभाईं भी. अपने पिता शान्तनु का सत्यवती से विवाह करवाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की भीषण प्रतिज्ञा की थी. राजा बन सकने के बावजूद आजीवन हस्तिनापुर के सिंहासन के संरक्षक की भूमिका भी भीष्म पितामह ने निभाई. जन्मते ही माता द्वारा परित्याग और अंत में शर-शैय्या का दंश! आजीवन संघर्ष की प्रतिमूर्ति थे भीष्म पितामह!
कर्ण की कथा भी मनोहर ने सुनी थी. आजीवन संघर्ष की प्रतिमूर्ति बनकर कर्ण ने भी अपनी प्रतिज्ञा निभाई. कर्ण की दानवीरता का लाभ उठाकर इंद्र ने उसके शरीर के अभिन्न अंग कवच-कुंडल ले लिए और अपने पुत्र अर्जुन को बचाने का प्रयास किया. अपनी दानवीरता के कारण ही उसने जन्मते ही परित्याग करने वाली माता कुंती को वचन दिया, कि अर्जुन के अतिरिक्त किसी पांडव भाई का वध वह नहीं करेगा. हाथ में आए हुए अवसर भी वह त्यागता चला गया और अपनी प्रतिज्ञा निभाई. श्रीकृष्ण की कारगर कूटनीति और दुर्योधन के हठ और आतुरता के कारण अर्जुन के वध के लिए सुरक्षित रखी अमोघ शक्ति का प्रयोग उसे घटोत्कच के वध के लिए करना पड़ा और वह अर्जुन का वध नहीं कर पाया. अपने प्राणों की आहुति सेकर भी उसने कुंती को दिए पांच पुत्रों की माता कहलाने की प्रतिज्ञा निभाई. मनोहर ऐसी कोई भूल नहीं करना चाहता था. प्रकृति प्रदत प्रखर प्रतिभा, हाथ की शफा और अतुलित धैर्य के संबल से उसने अपनी प्रतिज्ञा को मन में बसाए रखा.
प्रतिज्ञा पूरी करने में मनोहर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. माता-पिता को आजीवन कैंसर से लड़ता देख उसने भी कैंसर-उन्मूलन की प्रतिज्ञा ली थी. आजीवन संघर्ष करके वह डॉक्टर बन गया था. अच्छे अस्पताल में नौकरी का अवसर भी उसने गरीबों की सेवा और कैंसर-उन्मूलन के लिए छोड़ दिया. घर में ही वह गरीबों का मुफ्त इलाज करता. हाथ में उसके शफा थी. ख्याति बढ़ती गई. सामर्थ्यवान अपनी दानवीरता से उसे नवाजने में पीछे नहीं रहते. इसी दानशीलता ने उसका अपना अस्पताल भी बनवा दिया था और कैंसर-उन्मूलन विभाग उसकी विशेषता थी. गरीबों का मुफ्त इलाज यहां भी बरकरार था और बरकरार थी उसकी कैंसर-उन्मूलन की प्रतिज्ञा.
(7 नवंबर राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर विशेष)
मनोहर ने प्रकृति प्रदत प्रखर प्रतिभा और अतुलित धैर्य के संबल से उसने अपनी प्रतिज्ञा को मन में बसाए रखा और अपने नाम को स्वनामधन्य करते हुए उस प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में सफल भी हो सका.