हर कोई किसी न किसी के करीब है
कहीं भी आंतरिक सज्जा
उसके बिना संभव नहीं है,
जो कि अवधूत है
या भूत है !
….या आडंबर के विन्यास पर
जीवंत सुधार हो
….या समंदर के आंदोलन से
ज्यादा प्राचीन या अर्वाचीन है
एक तो समवेत निदान के भास्कर
ज्यादा कठिन है या कठिनतर !
जो हो,
पर इतना तय है
यहाँ हर कोई
अजीबोगरीब है,
पर कोई भी
किसी न किसी के
करीब है !