ग्राउंड जीरो
मेरे प्रिय मित्र भाई भरोसे लाल आया और बोले कि तैयार हो जाओ ग्राउंड जीरो पर चलना है। क्योंकि मेरा अंग्रेजी का ज्ञान अल्पतम है चलो पहले अल्पतम का ही मतलब बता दूँ क्योंकि हो सकता है आप सब अंगेरजी प्रेमी होंगे ही इसलिए सम्भव है कि आपका हिंदी ज्ञान भी अंग्रेजी जैसा ही हो। इसलिए ही बता रहा हूँ। अल्पतम ज्ञान का अर्थ यानि मतलब है न के बराबर यानि बहुत कम जानकारी होना। पहले सोचा अल्पतम ही रहने दूँ क्योंकि यदि सीधा २ बता दूँ कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती, तो लोग मुझे बिलकुल ही अनपढ़ समझेंगे क्योंकि हमारे देश में उन्हें ही समझदार और पढ़ा लिखा मन जाता है जिन्हे अंग्रेजी आती है। इसलिए अंग्रेजी जानने वालों को ही यहां अफसर बनाते हैं। इसीलिए सोचा था कि अल्पतम ही रहने दूँ ताकि जिन्हे अंग्रेजी आती है कम से कम उन्हें तो मैं पढ़ा लिखा लगूँ।
पर भाई भरोसे लाल मेरे मित्र हैं तो मैं उन्हें जाने के लिए मना नहीं कर सकता था और वैसे भी आज छुट्टी थी कोई बहाना भी नहीं था। इसलिए उनके साथ जाने के लिए मैं तैयार होने लगा। अभी मैं तैयार भी नहीं हुआ था कि इतने में तो उन्होंने आकर दरवाजा भी खटखटा दिया और बोले जल्दी बाहर आ जाओ। मैंने उन्हें अंदर आने का आग्रह किया पर आज वे नहीं माने और जल्दी चलने को बोलने लगे। मुझे अजीब सा लगा नहीं तो वे बिना चाय पिए तो कभी जाते ही नहीं था। बस यही कहते रहे कि जल्दी करो। फिर भी मैंने पूछ ही लिया कि भाई जाना कहाँ है। तो फिर उन्होंने वही बात दोहरा दी कि ग्राउंड जीरो जाना है. तो मैंने सोचा कि हो सकता है ग्राउंड जीरो हमारे देश की सीमा से शुरू होता हो पर वह तो बहुत दूर है और वहां तो बिना प्रेस का ताम झाम लिए बिना जा भी नहीं सकते हैं फिर पता नहीं वहां जाने की क्यों कह रहे हैं।
मैंने हिम्मत करके फिर पूछ लिया कि भाई आखिर जाना कहाँ है तो फिर उन्होंने वही जबाब दिया कि बताया तो ग्राउंड जीरो जाना है। मैंने इस बार सोचा कि शायद प्लेग्राउंड को ही ग्राउंड जीरो कह रहे होंगे पर ये प्ले ग्राउंड में पता नहीं प्ले की जगह बार बार जीरो क्यों लगा रहे हैं सीधा प्ले ग्राउंड पता नहीं क्यों नहीं कह रहे हैं। हो सकता है उन्होंने अलग अलग स्कूलों के प्ले ग्राउंड्स के भी नंबर लगा रखे हों जैसे जीरो एक दो तीन चार और इन्ही में से ही किसी प्ले ग्राउंड को ही जीरो नंबर दे रख हो और उसे ही ग्राउंड जीरो कह रहें हों।
तब मैंने पूछा कि क्या किसी स्कूल में कोई टूर्नामेंट यानि खेल प्रतियोगिता हो रही है तो उन्होंने मेरी और बड़े आश्चर्य से देखा कि पता नहीं मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ शायद मेरे मजाकिया लहजे के कारण भी उन के इस आश्चर्य से देखने में थोड़ा गुस्सा भी था कि मैं किसी भी समय मजाक कर देता हूँ। मुझे लगा कि शायद मैंने उन्हें कुछ गलत कह दिया है जैसे घर में जब सब्जी बन चुकी हो, पहले ही बताया जा चुका हो कि शाम को यह सब्जी बनेगी और आप श्रीमती जी से पूछे कि क्या सब्जी बनी है तो वह भी ऐसे ही देखेगी कि समझ नहीं आया कि अब बन चुकी है और जो बनी है उसी से रोटी खानी पड़ेगी। इसमें पूछने की क्या बात है। और यदि कुछ बनवाना था तो सुबह कहते कि क्या बनेगा। ऐसे ही भाई भरोसे लाल ने मेरी ओर देखा कि जब चल रहे हों तो वहीं चलकर देख लेना कि कहाँ जा रहे हैं।
यह सोचकर मैंने उन्हें पूछा कि क्या किसी स्कूल में कोई टूर्नामेंट यानि खेल प्रतियोगिता हो रही है। तो उन्होंने मेरी ओर बड़े आश्चर्य से ऐसे देखा कि पता नहीं मैं इनकी किसी महिला मित्र के विषय में पूछ रहा हूँ। मुझे भी लगा कि शायद मैंने उनसे कोई गलत प्रश्न ऐसे पूछ लिया है जैसे जब घर में सब्जी बन चुकी हो और तब आप श्रीमती जी से कहे आज तो बाजार में खाना खाने का मन है, तो वह भी ऐसे ही देखेगी जैसे भाई भरोसे लाल ने मेरी और देखा। जिसके कारण मैं कुछ समय के लिए मजबूरी में चुप हो गया।
परन्तु मेरी उत्सुकता दूध के उफान की तरह बाहर बड़ी तेजी से निकल रही थी, तो इसे रोकना मेरे बस की बात ही नहीं थी। आप समझ ही गए ही होंगे कि दूध में कैसे उफान आता है, वैसे ही मुझे ग्राउंड जीरो को प्रबल इच्छा हो रही थी इसलिए मेरे लिए इसे रोकना बड़ा मुश्किल था कि यह ग्राउंड जीरो कहाँ पर है। इसलिए इस बार मैंने थोड़े कड़ेपन से पूछा कि भाई आप बताते क्यों नहीं कि यह ग्राउंड जीरो कहाँ हैं या हम जा कहाँ रहे हैं। उन्होंने जब मेरा यह रुख देखा तो उनके मुंह से भी फूल तो नहीं झड़े पर चिंगारी की तरह शब्द झड़ने लगे कि तुझे कुछ पता भी है कि अपने शहर में क्या हो रहा है।
क्योंकि अब उन्होंने बोलना शुरू किया तो मैंने भी लगे हाथ पूछा कि जब मुझे पता नहीं है तो क्या आप मुझे बता भी नहीं सकते हो कि कहाँ जाना है। आखिर उन्हें बताना ही पड़ा कि किसी दरिन्दे ने किसी बच्ची के साथ अनाचार किया है वहीं जा रहे हैं। मुझे बड़ा दुःख हुआ कि आखिर इस देश में यह क्या हो रहा है। आखिर हमारा समाज कितना गिरेगा। तब मैंने उन्हें पूछा कि वहां पुलिस नहीं पंहुची या पुलिस ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की क्या? उन दरिंदों को पकड़ना तो पुलिस का काम है। तब उन्होंने बताया कि उन्हें पुलिस ने तो शाम को ही गिरफ्तार कर लिया है। तो फिर हम वहां किसलिए जा रहे हैं उन्हें पकड़कर अब अदालत में सौंपना पुलिस का काम है और अब उन्हें सजा देना न्यायालय यानि अदालत का काम है। और हम न तो पुलिस हैं और न ही अदालत हैं। तो हम वहां किसलिए जा रहे हैं?
तब वे बोले बंधु आप भी रहे वही अरे पुलिस और न्यायालय तो जो करेंगे वह करेंगे ही क्योंकि सब जानते हैं कि पुलिस कैसी है और कभी किसी दबाब में कुछ सही कर भी दे तो न्यायालय में कौन सा आसानी से न्याय मिल जायेगा। वहां तो कानून की किताब के हिसाब से न्याय होता है न्याय के हिसाब से नहीं। तो कुछ करना है। हम यदि कुछ नहीं करेंगे तो पुलिस पर दबाब कैसे बनेगा। मैंने उनसे कहा कि पर मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि हमे दबाब बनाने की जरूरत क्यों पड़ती है, क्या इस देश में कोई व्यवस्था नाम की चीज ही नहीं है। वे बोले आपको यह सब समझ नहीं आएगा हम दबाब बनाने के लिए ही तो ग्राउंड जीरो इकठ्ठे हो रहे हैं ताकि वहां धरना देकर जलूस निकालें और महामहिम राष्ट्रपति जी और राज्यपाल महोदय के नाम ज्ञान दे सकें। इस से प्रशासन पर दबाब बनेगा।
अब मैं समझ गया कि यह ग्राउंड जीरो कौन सा है यानि जहां दुराचार हुआ है उसे ही ये ग्राउंड जीरो कह रहे हैं। परन्तु यह ग्राउंड जीरो की रिपोर्टिंग हर दिन अलग अलग शहरों से आती रहती है ऐसी कौन सी जगह है जहां पर यह ग्राउंड है. कहीं दहाड़े लूट या डकैती हो जाती है ,कहीं पर दिन में ही गोलिया चल जातीं हैं कहीं पर सरे आम गुंडे आ कर किसी को भी धमका जाते हैं ,कहीं पर कोई शराब पीकर नशे में किसी पर भी गाड़ी चढ़ा देता है। ऐसा एक अपराध हो तो बताऊं यहां तो हर दिन अनगिनती अपराध होते हैं ऐसा कौन सा दिन होगा जिस दिन ऐसी खबरें न आतीं हों या कौन सी ऐसी जगह है जहां से ये खबरें न आती हों और इसीलिए हर दिन क्या हर घंटे ही कहीं न कहीं ग्राउंड जीरो बना ही रहता है।
इसी तरह की रिपोर्टिंग ने या जलसे जलूस या ज्ञापनबाजों ने ही पूरे भारत को ही ग्राउंड जीरो बना रखा है क्योंकि न तो रिपोर्टर कोई अच्छी खबरें छाप या दिखाकर और न ही नेता जनता को अच्छा संदेश दे सकते हैं और उन्हीं पीछे तो पुलिस और प्रशासन भी वैसा ही बन जाता है। इससे न तो गरीब को न्याय मिल सकता है और न ही सुख और शांति। इसलिए ही तो इन सबने मिलकरअपने अपने स्वार्थों के कारण देश को जीरो बना आगे भी इन ग्राउंड जीरो की संख्या रोज रोज बढ़ ही रही है। और इसमें नेता पुलिस और प्रशासन ही नहीं जनता भी सम्मिलित है। परन्तु यदि हम चाहें ग्राउंड जीरो को नंबर वन नहीं बना सकते क्या ? हमें इस जीरो को बदलना ही होगा और इस जीरो के बजाय देश को नंबर वन बनाना होगा पर इसके लिए थोड़ा सा स्वार्थ जनता को और थोड़ा सा नेता को छोड़ना होगा फिर पुलिस और प्रशासन सुधर जायेंगे और फिर न तो ज्ञापनबाजों की नौटंकी चलेगी और न ही जनता को बेवकूफ बनाने वालों की चलेगी।
— डॉ वेद व्यथित