जनता बेचारी
राजनिति की मारी
ये जनता बेचारी
आलू-प्याज ने इसकी
कमर तोड दी सारी
अच्छे दिन का ख्वाब
देखना बंद कर दिया
घिसट रही गृहस्थी की गाड़ी
नौकरी के पड़ गए हैं लाले
स्कूलो पर पड़े हैं ताले
मास्टर जी आधी तनखा
मन मारकर जी रहे हैं
बिना रोशनी त्योहार बेरंग
पटाखों पर लगा है प्रतिबंध
प्रदूषण की घंटी सभी बजारहे
अब तक उसे पकड़ नहीं पा रहे
ना जाने कहां से आता है
और कहां चला जाता है
लेकिन इसकी वजह से
बेचारी जनता कचूमर
निकाला जाता है
— अर्विना