कविता

मास्क लगाकर सोते हैं

हमारे एक मित्र,
बडे ही विचित्र.
कोरोना को लेकर इतना सतर्क
उनमें और आम आदमी में
बहुत है फर्क.
यही कारण है कोई भी आदमी
नहीं कर सकता
उनसे तर्क-वितर्क.
कोई भी भूल से किया जिरह कि,
निश्चित होना है उसका बेडा गर्क!
कलियुग के इस कोरोना काल में
डरे-सहमे रहते
इस विषय पर कुछ नहीं कहते.
कोरोना का डर
उनके जेहन में
सांप की तरह
गेडूंर मारकर बैठा है.
कुछ अजीब तरह से ऐंठा है.
मैं उनसे डरे-सहमें स्वर में पूछा-
“क्या हुआ भइये
कुछ तो बताइए
अपनी आप बीती सुनाइए.”
इतना कहते ही
मुझे उपर से नीचे तक
आपादमस्तक घूरे
उसके पश्चात
अपने व्यक्तव्य को
मेरे जेहन में हूरे-
“जब से कोरोना काल हुआ शुरू
मत पूछो गुरू
हर तरह से रहता सावधान
थोडी सी भूल हुई कि,
कमबख्त ले लेगी जान.
इसलिए एक घंटे के अंतराल पर
जब भी बाहर से आया चल के
हमेशा हाथ धोया मल-मल के!
यहां तक कि,
रात को सोते वक्त
मच्छरदानी को करता सेनेटाइज(senetize)
और साथ में मेरी पत्नी व
मेरा अबोध व्वायज(boys)
अच्छी तरह हाथ धोते हैं
आप नहीं मानिएगा
हमलोग फूल फेमिली
(full family)
मास्क लगाकर सोते हैं.”
मैंने कहा-“आप महान हैं
आपके पास अक्ल की आलमारी,
बुद्धि के बटलोही,
गगरी भरा ज्ञान है.
मैं तहे दिल से करता हूं नमन
प्रभु,कहां है आपके चरण?”
उन्होंने कहा-“मोजे के भीतर
बंद है.
क्या निकालूं?”
मैंने कहा-“रहने दीजिए
मुझे कुछ और कहना है
कहने दीजिए.
काश!एक बार कोरोना कुमारी से
हो जाता सक्षात्कार.
आपके करतूतों को देखकर
कमबख्त खुद हो जाएगी बीमार
डर जाएगी.
वह वूहान कहां जा पाएगी
अंजाने में आई,
यहां तक तो ठीक है
लौटकर नहीं जाएगी
हिंदुस्तान में ही मर जाएगी.”

— राजेंद्र कुमार सिंह

राजेंद्र कुमार सिंह

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