ग़ज़ल
आ सकी अब यहाँ बहार नहीं …..
फिर भी अब कोई सोगवार नहीं …..
है लगी अब इश्क़ की बोली भी …..
कोई इसका खरीददार नहीं …..
बोल पड़ते हैं बीच में सब ही …..
क्यों उन्हें ही भला क़रार नहीं …..
दुश्मनी की करो नहीं बातें …..
रिश्ते में अब कोई दरार नहीं …..
चल पड़े हैं उन्हें बिना देखे …..
आ सके अब यहाँ बहार नहीं …..
अब पुकारो किसे पुकारोगे …..
मुड़ के आने को हम तैयार नहीं …..
दुख बहुत दे दिये हमें तुमने …..
इश्क़ का अब चढ़ा बुखार नहीं …..
— रवि रश्मि ‘अनुभूति