गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

सच्चे दिल से साथ निभाए उसे पागल समझा जाता है
दंगा,बात-विवाद को ही समस्या का हल समझा जाता है।

कड़वी हकीकत कहने में जरा भी देर नहीं करता हूँ मैं
दुख है कि मेरी बातों को आज नही कल समझा जाता है।

पर पीड़ा देख आखों से बहते गंगाजल जैसे पावन आंसू
निर्मम लोगो द्वारा आंसू को भी सादा जल समझा जाता है।

बदलने वाले तो अक्सर बदल ही जाया करते हैं जमाने में
ईमान,वफा,सच्चाई को भी अब केवल छल समझा जाता है।

अदब से झुका वही करता,जिसमें होते संस्कार सभी अच्छे
अफ़सोस जमाने में ऐसे लोगों को निर्बल समझा जाता है।

— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616