कविता

दीपोत्सव

किसी जगह पर दीप जले अरु कहीं अँधेरी रातें हों ।
नहीं दिवाली पूर्ण बनेगी, अगर भेद की बातें हों ।।

ऐसे व्यंजन नहीं चाहिए, हक हो जिसमें औरों का ।
ऐसी नीति महानाशक है, नाश करे जो गैरों का ।।

हम तो पंचशील अनुयायी, सबके सुख में जीते हैं ।
अगर प्रेम से मिले जहर भी, हँस करके ही पीेते हैं ।।

चूल्हा जले पड़ोसी के घर, तब हम मोद मनाते हैं ।
श्मशान तक कंधा देकर, अन्तिम साथ निभाते हैं ।।

किन्तु चोट हो स्वाभिमान पर, जिन्दा कभी ना छोड़ेंगे ।
दीप जलाकर किया उजाला, राख बनाकर छोड़ेंगे ।।

दीपोत्सव का मतलब है यह, सबके घर खुशहाली हो ।
दीन दुखी निर्बल के घर भी, भूख मिटाती थाली हो ।।

प्रथम दीप के प्रथम रश्मि की, कसम सभी जन खायेंगे ।
दीप जलाकर सबके घर में, अपना दीप जलायेंगे ।।

घर घर में जयकारा गूँजे, कण कण में खुशहाली हो ।
सच्चे अर्थों में उस दिन ही, दीपक पर्व दिवाली हो ।।

— डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन