धरती पर न रहे अंधेरा
बाहर दीप जलाने से पहले,
अंतर्मन में इक दीप जला लें।
नेह सुधा-जल से अभिसिंचित कर,
बंजर मन में रस, प्रीति उगा लें।
अविवेक अंधेरा को अब त्यागें।
जोड़ें जीवन के बिखरे धागे।
सुख-शांति है आधार विकास का,
तरु-तटिनी तट मत काट अभागे।
हृदयांगन की हम करें सफाई,
सत्कर्मों को मनमीत बना ले।।
सब अपने ही हैं नहीं पराये।
मिलजुल गायें, खुशी मनायें।
धरती पर न रहे कहीं अंधेरा,
प्रेम, मधुरता, सद्भाव बनायें।
अब हार-जीत से ऊपर उठकर,
सामंजस्य के नव गीत बना लें।।
— प्रमोद दीक्षित मलय