यूज एंड थ्रो
साहब! क्या देखते हो रोज-रोज इस तरह हमें, ये आप लोगों की फैलाई गंदगी को ही साफ़ करती हूँ मैं।” अपनी ओर नजरें टिकाये साहब को देख, बिट्टो आज चुप न रह सकी।
हालांकि ये कोई नई बात नही थी शर्माजी अक्सर सुबह अपने बंगले के शानदार गेट पर खड़े हो कर उसे देखा करते थे। लेकिन आज काम की अधिकता के चलते शायद बिट्टो तनाव में थी और बाकी दिनों की अपेक्षा तेज हाथ चला रही थी जब उसे शर्माजी का ख़ुद को देखना खल गया।
“नहीं भई ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल मुझे तेरी अपने काम के प्रति ये लगन बहुत अच्छी लगती है जो मैं कई दिन से देख रहा हूँ।” शर्माजी मुस्कराते हुये कहने लगे। “और मैं चाहता हूँ कि तुम्हें मोहल्ले में होने वाले सफाई अभियान का ‘हेड’ बनाया जाए।”
“साहब, हम क्या करेंगें हेड बनकर. . .?”
“अरे बहुत कुछ। ठहर जरा, पानी पीकर करते हैं बात।” कहते हुए उन्होंने नौकर को आवाज लगाकर दोनों के लिये पानी लाने के लिये कहा और आगे बोलने लगे। “देख बिट्टो, तुझे लोगों को सफाई के लिये जागरूक बनाना है, लोगों को सफाई के बारे में बताना है और उनकी सोच को बदलने का प्रयास. . . ।”
“अब रहने दो साहब!” बिट्टो ने उनकी बात बीच में ही काट दी। “. . . हम लोग तो समाज की वो कालिख है जिसे लोग अपनी दहलीज पर भी बैठाने से पहले दस बार सोचते हैं। हमारी बात सुनेंगें लोग?”
“क्यों नही? बिट्टो ये सब बातें अब पुरानी हो गयी, समय बदल गया है।”
“हां साहब समय तो बदल गया है, हमारे हालात भी बदल गए हैं। पर शायद इंसान की सोच…।” अपनी बात कहते हुये बिट्टो की नजरें सहज ही शर्माजी के पीछे पानी लेकर आते नौकर पर जा टिकी थी, जो कुछ ही क्षण में खूबसूरत ट्रे में, एक ‘बोरोसिल गिलास’ के साथ एक ‘डिस्पोज़ल गिलास’ में पानी लिए ठीक उनके सामने आ खड़ा हुआ था।
विरेंदर ‘वीर’ मेहता