गीत/नवगीत

मंज़र हैं यहां तबाही के

मंज़र हैं यहां तबाही के।
फंसी हुई दुनिया कैसे
अपने ही पांसों में
एक वायरस टहल रहा
आदमी की सांसों में
कितने खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही के।
हर ओर जहां सन्नाटा है
हर रोज फासले बढ़ते हैं
हर रोज मौतें बढ़ रहीं हैं
हर ओर दुख के काफिले है
कैसी महामारी चली पांव थम गए संसारी के। मंजर हैं …
कैसा समय कैसी सदी !
हर पल यहां पर त्रासदी
इक वायरस के कोप से
थम-सी गयी जीवन-नदी
अवरोधक लग गए पांव में आवाजाही के। मंजर हैंं …
रहो अकेले घर में अपने
दूर रहो भीड़ भाड़ से
अगर बचोगे तभी
बचेगा अपना देश
हाँथ धूलो, मास्क लगाओ पर बैठो मत बेकारी के।

मंजर हैं यहां तबाही के

*बाल भास्कर मिश्र

पता- बाल भाष्कर मिश्र "भारत" ग्राम व पोस्ट- कल्यानमल , जिला - हरदोई पिन- 241304 मो. 7860455047