ऑनलाइन सुनने-सुनाने का चलन
लॉक डाउन में मोबाइल पर कविता ,गाने ,कहानियाँ सुनाने का चलन जोरो पर है। गानों की कल्पना,राग,संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है |गानों का इतिहास भी काफी पुराना है | रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है ,वही गीतों की राग ,संगीत जरिए घराने भी बने है पारम्परिक लोक गीत विशेष पर्वो पर गायन का चलन कम होता जा रहा है।सीधे फिल्मी गाने बजाने का चलन हो गया।पहले बुजुर्ग महिलाएं जिनको ,त्यौहार ,शगुन , लोक गीत आते थे उनसे गीत गवाए जाते थे।जैसे राती जोगा,शादी, धार्मिक पर्वों, आदि पर। शादी में महिला संगीत कार्यक्रमो में फिल्मी नृत्यों ने स्टेज पर जगह ले ली है। पारम्परिक लोकगीत जो दरी बिछा के बैठ कर गाए जाते थे।और बताशे बाटे जाते थे।वो विलुप्त होते जा रहे है।इस कार्यक्रम में बुजुर्ग महिलाओं को मान सम्मान मिलता औऱ उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने औऱ नई पीढ़ी को सिखाने का मौका मिलता था।ऐसे बदलाव से लोकगीत धीरे धीरे हमसे दूर होते गए। आधुनिकता ने जगह ली है। घर बैठे ऑनलाइन काव्य गोष्ठी एवं प्रमाण पत्र मिलना।एक नए सूरज का उदय होना। संक्रमण दौर समाप्त जब होगा तब मंच और श्रोता वापस आएंगे .कई दिनों तक बंद मंच के कविगण खुले आसमान में परिंदे की तरह अपनी काव्य उडान भरेंगे।
गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है | टी वी ,रेडियों ,सीडी ,मोबाइल आइपॉड,कम्प्यूटर आदि अधूरे ही है | पहले गांव की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे | वो चलन लॉक डाउन में मेंसे पहले ख़त्म था अब बाहर तो प्रतिबन्ध है। रेडियों का घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था | कुछ घरों में टेबल पर या घर के ताक में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे। जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी | बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे |रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी -प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस में जुड़ जाते थे |वो गानों में इतने भावुक हो जाते थे की वे अपने आप को हीरो -हीरोइन समझने लगते थे ।
लॉक डाउन के पहले वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने व् हेड फोन कानों में लगाकर गाने सुनने से भी दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है | क्योकि वाहन चालक का ध्यान मोबाइल सुनने में लगा रहता है | पीछे से हार्न देने वाले की सुनवाई भी नहीं होती | मोबाइल पर बातें व् गीत सुनने का शोक है तो तनिक रुक कर या घर जाकर भी तसल्ली सी गीत मोबाईल पर सुने जा सकते है.लॉक डाउन के चलते दुर्घटनाएं तो विलुप्ति की कगार पर जा पहुँची। सभी खुश ,सभी सही सलामत।
रेडियो पर दूर कही सुनसान माहौल में बजता गाना वाकई कानों में मधुर रस आज भी घोल जाता है ।गाने अब मोबाईल के संग जेबों में जा घुसे ,गानों में प्रतिस्पर्धा होने लगी । हर चैनल पर गायकों की प्रतियोगिता में अंक मिलने लगे । निर्णायकों की डॉट पढ़ने और समझाईश की टीप प्राप्त होने लगी ।जिससे प्रतिभागियों के चेहरे पर उतार चढाव झलकने लगता था ।अब पुराने एपिसोड से ही मन को खुश किया जाने लगा।
पृथ्वी पर देखा जाए तो गानों को अमरता प्राप्त है । पृथ्वी पर कोई भी ऐसा देश नहीं है जहाँ गानों का चलन न हो । वैज्ञानिकों ने गानों को ब्रम्हांड में भी प्रेषित किया है ताकि बाहरी दुनिया के लोग इस संकेत को पकड़ सके । शादी -ब्याह में वाद्य यंत्रों के साथ गाने, गाने का चलन बढ़ने लगा था । गीतों की पसंदगी व् हिस्सेदारी में पडोसी देश भी आगे आये थे । पहले के ज़माने में बच्चे -बूढ़े सभी अंतराक्षरी खेल कर अपने गायन कला का परिचय देते थे। अब घरों में अंतराक्षरी की वापसी में अपने में छुपी प्रतिभा घरवालों के सामने मिलजुलकर गायी जाने लगी।संक्रमण के इस दौर में गीतों में मधुरता जब ही प्राप्त होगी जब कोरोना जैसी समस्याओं का त्वरित हल होगा ।मनोरंजन तो हो जाता है किंतु दिमाग में टेंशन होने से गाने के बोल कर्ण प्रिय होने के बावजूद कर्ण प्रिय नहीं लगते है ।
— संजय वर्मा “दृष्टि “