राजनीति

‘पद्म’ की यह कैसी निष्पक्षता ?

31.12.2015 को ‘पद्म श्री-2015’ धारक के citations में विरोधाभास और खामियों की तरफ माननीय गृह मंत्रालय के श्रीमान् संयुक्त सचिव को email और speed post भेज ध्यान दिलाये गए थे कि 50 से अधिक citations में त्रुटियाँ हैं । ध्यातव्य है, यह citations गृह मंत्रालय ही तय करते हैं, यथा:-

1.)सुश्री सबा अंजुम, श्री सरदार सिंह किसी राज्य सरकार में ‘पुलिस उपाधीक्षक’ हैं, जो कि एतदर्थ नामांकित नहीं हो सकते थे !

2.)पद्म श्री-2015 के लिए नामांकनार्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 है, जबकि सुश्री अरुणिमा सिन्हा के citation में दि.12.12.2014 को आत्मकथा-विमोचन का जिक्र है ।

3.))स्वर्गीय रवींद्र जैन को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ और ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्तकर्त्ता बताया गया है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है ।

4.)श्री प्रसून जोशी के citation में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का जिक्र है, जिनका आरम्भ ‘अभियान’ के तौर पर दि. 02.10.2014 को हुआ, जबकि पद्म श्री-2015 के नामांकन की अंतिम तिथि- 15.09.2014 थी ।

5.)श्री संजय लीला भंसाली का जन्मवर्ष-1963 है और उन्हें वर्ष-1947 में ही फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिल जाता है । ऐसा citation में है ।

6.)श्री संजय लीला भंसाली निर्देशित हिंदी फ़िल्म ‘बाजीराव-मस्तानी’ का रिलीज़ माह ‘दिसंबर-2015’ का उल्लेख citation में है, जो कि पद्म श्री -2015 के नामांकनार्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 के 15 माह बाद की तिथि है ।

7.)श्रीमती उषा किरण खान को ब्रजकिशोर प्रसाद पुरस्कार-2015 मिलने का जिक्र उनके citation में है, एतदर्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 लिए यह पुरस्कार नास्तित्व ही रहा है ।

8.)आदि-आदि ।

— अन्य वर्षों की बात तो छोड़िए, यह सिर्फ पद्म अवार्ड – 2015 लिए है, इनमें भी 50 से अधिक एतदर्थ ‘साइटेशन’ में विरोधास और खामियाँ हैं, इनके कृत्यकारक पर ध्यानबद्ध करते और इसे सुधारते हुए एवं कई हजार एतदर्थ नामांकनार्थियों में से उपलब्धिधारक उम्मीदवार और उनके मौलिक-कृतित्व को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से वर्ष-2019 के पद्म अवार्ड का चयन होना चाहिए था, लेकिन हुआ कहाँ ? बिहार की आबादी लगभग 12 करोड़ है, प्राप्त हुई सिर्फ़ 6 को पद्म सम्मान 2019 ! वो भी ‘मधुबनी पेंटिंग्स’ को यानी बार-बार एक ही कला को ! क्या अन्य कला और विचार-मीमांसा यहाँ नहीं है क्या यह समझूँ कि 130 करोड़ की आबादी सिर्फ अकर्मण्य भारतीयों लिए भीड़ बढ़ाने के लिए ही है । वर्ष 2017 में मात्र 85 भारतीय ही योग्य है ! 2017 में यह अवार्ड 4 विदेशी ले गए ! तो इतनी बड़ी आबादी में मात्र 2 ओलम्पिक मैडल लाते हैं, तो परेशान क्यों ? जब हमारी भारत सरकार ही हमारा मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं ! वहीं 12 करोड़ बिहारी में मात्र 6 पद्म अवार्डी ! क्या इसे ही निष्पक्ष चयन कहेंगे ! क्या प्रतिभाशाली इतने ही है ? विदेशी को सम्मान, भारतीयों का क्यों नहीं ? वहीं महाराष्ट्र को अकेले 11 प्राप्त हुआ ! इसे क्या कहेंगे ? निष्पक्षता !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.