ग़ज़ल
हम किसी से गिला नहीं रखते
बेवजह आईना नहीं रखते
बात करते हैं बात सुनते हैं
प्यार में फासला नहीं रखते
मन के मंदिर में तेरी मूरत है
पत्थरों में खुदा नहीं रखते
इस तरफ हौसले उधर मंजिल
दरम्याँ रास्ता नहीं रखते
हमने सच की उपासना की है
झूठ से वास्ता नहीं रखते
हमको छेड़ा बहुत जमाने ने
याद हम बचपना नहीं रखते
धूप में जलके छाँव की हमने
सिर्फ लब पे दुआ नहीं रखते
जिक्र करने से जिसके रंज बढ़े
याद वो वाक्या नहीं रखते
‘शान्त’ गालिब फिराके से शायर
जस का तस काफिया नहीं रखते
— देवकी नन्दन ‘शान्त’