लघुकथा

लघुकथा – संदेह

कई दिनों से मुझे उस शक तो था क्योकि वो रोज छुपकर कुछ न कुछ करता रहता था. कभी किसी से फोन पर कोड लंगेवेज में बात करता, तो कभी इक बार हैलो कहकर फोन काट देता था. ऐसा काम तो को,ई जासूस करता है जो अपने भेद छुपाने ऐसा करते हैं. कोई फोन पर ऐसी बात भी करता है भला क्या?

मेरा संदेह उस वक्त और गहरा हो गया, जब वो फोन पर बात करने व्यस्त था, मुझे देखा और फोन काट दिया. उसको मुझसे क्या खतरा होगा जो उसने ऐसा किया?

वो अपने बारे में कई बार झूठ बोलता आया है, कभी अपना नाम कुछ और बताता था, कभी पता बदलकर बताता था. लोगों के पास भी उसके जानकारी भी नहीं थी. संदेह है या हकीकत हमें पता लगाना पड़ेगा. उसने ये भी छुपाया है कि उनका जन्मस्थली क्या हे.

पूछने पर बार बार कहानी बना रहा था जो हकीकत से बिल्कुल भी मेल नहीं खा रही है उस पर उनका संदेह गहरा होता जा रहा था वो जब भी पूछते तो एक नई कहानी सुनाता और जब झूठ पकड़ा जाता है कुछ और सुनाने लगता संदेह हकीकत का रूप लेता जा रहा था

— अभिषेक जैन

 

 

 

 

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश