तीन महान विभूति
महान योद्धा महाराणा प्रताप
…………………………………….
मेवाड़ छिन्न -भिन्न हो गया….. जंगलों में सपरिवार दर -दर ठोकरें खाते घास की रोटियाँ खाई, किन्तु विदेशी आक्रांताओं (मुगलों) के आगे झुके नहीं । अपने लोगों ने ही धोखा दिया, किन्तु दलित -पिछड़े वर्ग (भील) के सरदार ‘झाला’ ने महान महाराणा (प्रताप) की जान बचाई, तो निरीह पशु ‘चेतक’ भी प्राणपण साथ दिया और अंततः, गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से चित्तौड़ हासिल किया । गत दिवस 19 जनवरी को ऐसे विभूति की पुण्यतिथि थी । हृदयशः सादर स्मरण!
कविसम्राट हरिवंशराय बच्चन
……………………………………….
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में डॉक्टरेट पानेवाले भारत के पहले व्यक्ति, जिन्होंने सर्वधर्मसमभाव के परिधित: ‘मधुशाला’ रच डाले और यह कृति खूब सुना गया, पढ़ा गया और गुनगुनाये गए । वैसे डॉ. हरिवंशराय श्रीवास्तव ‘बच्चन’ की सबसे उम्दा कृति ‘अमिताभ बच्चन’ को माना जाता है, जोकि उन्होंने ही कभी प्रसंगश: कहा था । गत दिवस 18-19 जनवरी की मध्य रात्रि को ऐसे महान साहित्यकार की पुण्यतिथि थी, सादर श्रद्धांजलि!
पूज्य बाबा योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’
……………………………………………..
संत -सेवक प्रातःस्मरणीय योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’ के बारे में क्या कहूँ ? यह शख़्स नहीं होते, तो मैं नहीं होता ! मेरे अज़ीज़न दादाजी (पितामह) यानी सत्संगी जी महर्षि मेंहीं के अनन्य भक्त और 1942 -भारत छोड़ो आंदोलन के एक सेनानी रहे । माननीय पूर्व सांसद श्री शशि भूषण ने पत्रांक- 1100/दिनांक-14.02.1994 के मार्फ़त उनकी जीवनी को भारत सरकार की एतदर्थ पुस्तक में शामिल किया था । मेरे दादाजी के नाम ‘पद्म सम्मान’ के लिए भी नामांकित हुआ था । गत दिवस 18 जनवरी को मेरे दादाजी की पुण्यतिथि थी । प्यारे ‘दा को सादर श्रद्धांजलि!