वर्ल्ड रिकॉर्ड्स
माँ ने 31 प्रकार की ‘लाई’ (लाड़ू) बनाई है, जिनमें मुढ़ी, भुज्जी, कच्चा चिउरा, भूना चिउरा, मकई, तिल, अरवा चावल, बाजरा, खोय, मूँगफली, ज्वार, मटर, चना इत्यादि की लाई (लाड़ू) शामिल हैं । माँ यह बनाने में तीन-चार दिनों का समय लगाई है । वे विगत 50 वर्षों से बना रही हैं….
हमारे यहाँ यह ‘खाद्य-सामग्रियां के दिन या इस सप्ताह सबके यहाँ बनती है । कुछ मित्र भी लाई (लाड़ू) उद्धार करने (खाने) आये थे, अभी-अभी गए हैं…. सबका अभिनंदन…. पाककला के महान अभियंता ‘माँ’ को सादर प्रणाम….
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वर्त्तमान समय में सम्पूर्ण भारत में हिंदी ‘ग़ज़ल’ विधा के महत्त्वपूर्ण व सशक्त हस्ताक्षर तथा बहराइच, उत्तर प्रदेश के रहवासी “आयुर्वेद चिकित्साधिकारी” डॉ. अशोक गुलशन मेरे ‘अग्रजसम’ हैं; उनकी ग़ज़ल भारत सहित कई देशों में गुनगुनायी जाती हैं। उन्हें सबसे लघुतम और वृहदतम ‘ग़ज़ल’ लेखन के लिए 3 दर्जन से अधिक रिकॉर्ड्स बुक और वेबसाइट ने अद्भुत “प्रमाण-पत्र” प्रदान की हैं, जो कि ‘विश्व कीर्तिमान’ (World Records) लिए हैं। डॉक्टर साहब की 3 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं तथा उन्होंने भारत के प्रायः राज्यों में ग़ज़लों के मंचीय-पाठ तो किए ही हैं, साथ ही अनेक देशों की यात्राएं भी की हैं। वे सरल स्वभाव के हैं और आलोचनाओं से भी नहीं घबराते हैं।
वैसे मेरा उनसे परिचय 30 वर्षों से भी अधिक समय लिए है, तथापि इधर सालभर से मुझे ‘बड़े भाई’ (डॉ. गुलशन सर) का अत्यधिक सान्निध्य मिल रहा है। यही कारण है, पुस्तक-द्वय [1. पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद (शोध); 2. लव इन डार्विन (नाट्य पटकथा) को डॉक्टर साहब ने बड़े मनोयोग से अपनी मानस में जगह दिए हैं। सादरापेक्षा है, पुस्तक-द्वय को लेकर आपकी लेखनी ‘एतद समीक्षार्थ’ लालायित हो रही होंगी!
मकर संक्रांति उत्सव और गणतंत्र दिवसोत्सव की अनगिनत शुभकामनाओं के साथ आशा है कि आप इस नवदशक के प्रथम वर्ष 2020 में खूब ‘रिकॉर्ड’ बनाएंगे, खूब पुस्तक-प्रणयन करेंगे!