लघुकथा

बहस

आज फिर हो गई उससे मेरी तकरार मैं भी क्या करता वह मुझसे उस लहेजे बात कर रहा था उस तरह की बात को कहने की किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी। तुम दोस्त तो करता हुआ मेरे सिर पर चढ़ते जाओगे मैंने गुस्से में उससे बड़ा बढ़ते हुए कहा। तुम इतनी बड़ी हो तुम्हे बात करना भी नहीं आता देखो तो लोग तमाशा देख रहे हैं देखने दो तमाशा भी तो तुम्हीं बनाया हे मेरा। और अब तुम्हीं को बुरा भी लग रहा है देखो सुधार जाओ वरना तुम मुझको खो दोगे।

माफ़ करना तुमने तो मुझे से बहस की शुरूवात करते हुए ही खो दिया है। मेरे मुंह मत लगो।

तुम भी मेरा मुंह मत खुलवाओ पैर को जमीन पटककर वो घर की तरफ बढ़ गया ‌और रस्मी की आंख मे आंसू में आ गए थे जो वो भावुकता को दिखाने में अक्सर कर ही देती है और लोगों की सहानुभूति को बटोरने में कामयाब हो जाता करती थी

इस बहस ने दो दिलो के बीच न भरने वाली खाई का निर्माण कर दिया था  जिसमें उसका प्यार का रिश्ता खो चुका था

— अभिषेक जैन

 

 

 

 

 

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश