हे कोरोना ! तुम कब जाओगे ?
चक्की मिल तो
‘सोशल डिस्टिनसिंग’ के कारण तो
जानी नहीं है….
गेहूँ के दर्रे तैयार करने में
‘माँ’ जुटी हैं,
आज का खाना ‘घांटा’ होगी….
….और बनेगी,
तब न खाएंगे…..
अबतक ‘उपवास’ में हूँ !
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दिन में मक्खी,
रात में मच्छर,
का सोई….
बारसोई !
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आजकल तो सभी कष्ट में है,
कोई कम,
कोई ज्यादा !
जब कोई कष्ट में होते हैं,
परिवार और मित्र नहीं,
सबसे पहले
अपना विवेक ही काम आते !
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आज दिन नहीं खा सका….
कई दिनों के बाद
गेहूँ की रोटी
और घर के पेड़ की
सहजन की सब्जी
खाने को मिली है….
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आजकल
कई परेशानियाँ हैं,
पूर्ण निदान
किसी के पास नहीं है !
सहने और एकांत रहने की
आदत डाल चुका हूँ !
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दूरियाँ रखकर भी
प्रेम प्रदर्शित की जा सकती है !
अदृश्य दुश्मन से
लड़ने के लिए भावुक न बने,
परिजनों और प्रियजनों में
दूरियाँ रखें !
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