ख्वाब
आँखें ढूँढती हैं हर पल वो ख्वाब
ख्वाब में भी जो सच लगे
बाँध कर उड़ते हुए मन को
जो सिर्फ अपना सा लगे
बिछुड़ने का न हो डर एक पल भी
जीता हुआ कोई सपना लगे ।
कभी रख दे दुखती हुई रग पर उँगली
धीरे से सहलाकर मुझसे पूछे
बताओ न क्या गम है तुम्हें
रोकर जिसके कंधे पर
दुःख भी हल्का लगे
चलो छोड़ो ये सिर्फ ख्वाब है
कहाँ फुरसत है किसी को
यहाँ तो सब खुद से ठगे से लगे
खोज रहे हैं सभी अपने लिए
नित नए बहलाने के तरीके …..
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़